Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 09
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 62
________________ ५७० आशयको लेकर केवल क्रियाओंहीकी नकल नहीं ,की गई बल्कि उन शब्दोंकी भी अधिकतर नकल की गई है जिन शब्दोंमें ये क्रियायें हिन्दूधर्मके प्रथोंमें पाई जाती हैं । और तो क्या, बहुतसे वैदिक मंत्र भी ज्योंके त्यों हिन्दु ग्रंथोंसे उठाकर इसमें रक्खे गये हैं । नीचे जिनसेन त्रिवर्णाचारसे, उदाहरणके तौर पर, कुछ वाक्य और मंत्र उद्धृत किये जाते हैं जिनसे श्राद्धका आशय, उद्देश, देवपितरोंकी तृप्ति और नकल वगैरहका हाल और भी पाठकों पर विदित हो जायगाः " नित्यश्राद्धेऽर्थ गंधायैर्द्विजानचेत्स्वशक्तितः । सर्वान्पितृगणान्सम्यक् तथैवोद्दिश्य योजयेत् ॥ १॥" इस श्लोकमें नित्य श्राद्धके समय ब्राह्मणोंका पूजन करना और सर्व पितरोंको उद्देश्य करके श्राद्ध करना लिखा है। इसी प्रकार दूसरे स्थानों पर भी 'ब्राह्मणं गंधपुष्पाद्यैः समर्च येत, 'अम्मत्पितुनिमित्तं नित्यश्राद्धमहं करिमये,' इत्यादि वचन दिये हैं.। " नावाहनं स्वधाकारः पिंडाग्नौकरणादिकम् । ब्रह्मचर्यादि नियमो विश्वेदेवास्तथैव च ॥ २ ॥" इस श्लोकमें उन कर्मोंका उल्लेख किया है जो नित्य श्राद्धमे वर्जित हैं । अर्थात् यह लिखा है कि नित्य श्राद्धमें आवाहन, स्वधाकार, पिंडदान, अग्नौकरणादिक, ब्रह्मचर्यादिका नियम और विश्वेदेवोंका श्राद्ध नहीं किया जाता । यह श्लोक हिन्दूधर्मसे लिया गया है। हिन्दुओंके * आह्निक सूत्रावलि ' ग्रंथमें इसे व्यासजीका वचन लिखा है। " दैद्यादहरहः श्राद्धमन्नायेनोदकेन वा । पयोमूलफलैर्वापि पितृभ्यः प्रीतिमावहन् ॥ ५ ॥" ___१ मैं अपने पिताके निमित्त नित्य श्राद्ध करता हूँ। २ मनुस्मृतिमें ' दद्यात् के स्थानमें 'कुर्यात् ' लिखा है। परन्तु मिताक्षरादि ग्रंथोंमें ' दद्यात् ' के साथ ही इसका उल्लेख किया है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72