Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 09
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 48
________________ . .६५६ धर्मविरुद्ध कथनोंका दिग्दर्शन कराया जायगा । * अधिक लिखना शायद पाठकोंको अरुचिकर हो जाय; इसलिए यहाँपर बहुत संक्षेपके साथ धर्मविरुद्ध कथनोंके कुछ थोडेसे नमूने और भी प्रगट किये जाते हैं । जिनसे जैनियोंकी थोड़ी बहुत आँखें खुलें और उन्हें ऐसे जाली ग्रंथोंको अपने भंडारोंसे अलग करनेकी सदबुद्धि प्राप्त हो: १-मिट्टीकी स्तुति और उससे प्रार्थना । जिनसेन त्रिवर्णाचारके चौथे पर्वमें, मृत्तिका स्नानके सम्बन्धमें, निम्नलिखित श्लोक दिये हैं: " शुद्धतीर्थसमुत्पन्ना मृत्तिका परमाद्भुता । सर्व पापहरा श्रेष्ठा सर्व मांगल्यदायिनी ॥ सिद्धक्षेत्रेषु संजाता गंगाकुले समुद्भवा । मृत्तिके हर मे पापं यन्मया पूर्वसंचितम् ॥ अनादि निधना देवी सर्वकल्याणकारिणी। पुण्यशस्यादिजननी सुखसौभाग्यवर्धिनी ॥" - इन श्लोकोंमें गंगा आदि नदियोंके किनारेकी मिट्टीकी स्तुति की गई है । और उसे सर्व पापोंकी हरनेवाली, समस्त मंगलोंके देनेवाली सम्पूर्ण कल्याणोंकी करनेवाली, पुण्यको उपजानेवाली और सुखसौभाग्यको बढ़ानेवाली, अनादिनिधना देवी बतलाया है । दूसरे श्लोकमें उससे यह प्रार्थना भी की गई है कि 'हे मिट्टी, तू मेरे पूर्वसंचित पापोंको दूर कर दे ।' यह सब कथन जैनधर्मसे असंबद्ध है, और हिन्दू धर्मके ग्रंथोंसे लिया __* जिनसेन त्रिवर्णाचारमें सोमसेन त्रिवर्णाचार प्रायःज्योंका त्यों उठाकर रक्खा हुआ है । और सोमसेन त्रिवर्णाचारकी परीक्षा एक स्वतंत्र लेख द्वारा की जायगी, ऐसी सूचना पहले दी जा चुकी है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72