Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 09
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 34
________________ . .५४२ मान्या और उसकी सखियोंने उनके हाथ पैरोंको अच्छी तरह एक रस्सीसे कसकर बाँध दिया और फिर उन्हें आसानीसे जमीनपर लुढका दिया । नवाब साहबने अपने दरबारके एक हिन्द कविके मुहसे कृष्णचरित्र सुन रक्खा था। आपसे अपनी इस कैदकी अवस्थाका मिलान चौरलीलाके साथ करने लगे। एक बार कृष्णजी किसी ग्वालके घटका दूध दही चोरीसे खा गये। गोपिकाओंने देख लिया। उन्होंने उन्हें पकड़ा और मुश्के बाँधा कर वे यशोदा माताके यहाँ ले गई। जिस समय आप अपने कल्पनाराज्यमें मस्त होकर आपको श्रीकृष्ण असामान्याको राधिका और अन्य साखियोंको ब्रजबालायें समझ रहे थे, उसी समय असामान्या बोली:-"नवाब साहब, अब जरा सावधान होकर आप अपनी अवस्थाका विचार कीजिए। थोड़ी देर पहले जो विस्तृत बंगालदेशका राजा था, वही इस समय एक सामान्य वणिककी स्त्रीके अधिकारमें है । मुकटका बहुमूल्य मणि धूलमें लोट रहा है। लाखों मनुष्यों के जीवनमरणको अपनी मुट्ठीमें रखनेवालेका जीवन एक यःकश्चित् स्त्रीकी मुट्ठीमें ? आप जानते हैं कि इस समय मैं आपकी क्या क्या दुर्दशायें करा सकती हूं। अच्छा हो, यदि आप समझ जा और यह प्रतिज्ञा करके यहाँसे चुपचाप चले जावें कि मैं आगे किसी भी परस्त्रीके साथ ऐसा बुरा व्यवहार न करूँगा। मैं आपको अभी छोड़े देती हूँ। मैं नहीं चाहती हूँ कि बंगालके सर्वशक्तिमान महाराजाका किसी तरह अपमान हो, इसलिए इस प्रकार नम्रताके साथ समझा रही हूँ।" __ नवाब-मेरी जान ! मेरी प्यारी | तुह्मारे इन्हीं गुणों पर तो मैं फिदा हुआ हूँ। तुम्हारे जैसी हिम्मत, हुकूमत, और समझाने बुझानेकी चतुराई एक नवाबकी बेगममें ही शोभा पाती है। मैं तुम्हारी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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