Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 09
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 33
________________ ५४१ और देखती रही। असामान्या चाहती थी कि इस स्त्रीका परिचय पू, और उससे बैटनेके लिए कहूं कि इतनेमें वह बुरखा फेंककर इसकी और बाहें पसारकर आलिंगन करनेके लिए झपटी । असामान्याने देखा कि वह स्त्री नहीं किन्तु दाढी मूछोंसे युक्त एक मुसलमान पुरुष है। (२) आर्यपत्नी पहले तो दिग्मूढसी हो रही; परन्तु तत्कालही कर्तव्यको सोचकर उसने अपनी सारी शक्ति लगाकर उसे दूर धकेल दिया और अपने पतिको यह संवाद देनेका निश्चय किया । वह दौडकर जीनेके पास तक ही पहुंची थी कि इतनेमें उसके हृदयमें दयाका सोता वह निकला । मनहीमन कहने लगी-' अवश्य ही यह नवाब सिराजुद्दौला है । इतने बड़े प्रतिष्टित और उच्चकोटिके पुरुषकी दुर्दशा कराके में इसे नीचीसे नीची अवस्थामें पटक दूं, यह मेरे लिए कदापि उचित नहीं है । संभव है कि मैं इसे समझा बुझाकर मार्ग पर ले आसकूँ और आजतक सैकड़ों आर्यपत्नियों और आर्यकन्याओपर अत्याचार करनेवाला एक पतितात्मा दयाजनक अन्धकारमेंसे मुक्त होकर प्रकाशमें आजाय तब मैं इसकी दुर्दशा क्यो कराऊँ ?" यह सोचकर वह लौट आई और अपनी सखियोंसे तीव्र स्वरसे-बोली यह अपना घर है; यहाँ डरनेकी और भागनेका कोई जरूरत नहीं। तुम सब हिम्मत बाँधो और आओ मुझे इस पतित पुरुपके पकड़नेमें सहायता दो । पलायोन्मुखा सखियोंने हिम्मत बाँधी और वे भी इसके साथ नवाबपर टूट पड़ी । नवाब साहेब प्रेमके भिक्षुक बनकर आये थे, इसलिए उन्होंने इस समय अपना बल प्रगट करनेकी कोई आवश्यकता न समझी, बल्कि कोमलाङ्गिनी रमणियोंके आक्रमणको उन्होंने अपना एक सौभाग्य समझा । असा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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