Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 09
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 38
________________ ५४६ होने लगी । चारों तरफ नौकर चाकर दौड़ाये, परन्तु कुछ भी फल न हुआ। तब क्या उसने आत्मघात कर लिया ? परन्तु अब आत्मघात करनेका तो कोई कारण न रहा था ! गंगाके किनारे एक अनाथा स्त्री रक्तमें लथपथ हुई पड़ी है। उसके पास ही एक दो तीन दिनका जन्मा हुआ सुकुमार बच्चा पड़ा है। स्त्रीकी उमर १७ वर्षसे अधिक न होगी। रंगरूपसे वह . कोई प्रतिष्ठित घरानेकी स्त्री मालूम होती है । परन्तु इस समय बेचारी बड़ी बुरी हालतमें है । उसके होशहवास ठिकाने नहीं हैं । जहाँ तहाँसे उसे' भयसूचक शब्द सुन पड़ते हैं। पूर्वकी ओरसे जब वह अपने आप ही सुनती है कि 'पकड़ो, यह पड़ी है। तब बच्चेको उठाकर पश्चिमकी ओर दौड़ने लगती है और घडीकमें वहाँसे भी किसी चीजकी आहट सुनती है तब उत्तरकी ओर दौड़ने लगती है । उसके हृदयका भय कल्पनाके द्वारा बाहर प्रत्यक्ष होता है और इस तरह बाहरसे और भीतरसे भयकी दुहरी चपेटें खाकर उसकी दशा बहुत ही शोचनीय हो रही है। पाठक आप जानते हैं कि यह विपत्तिकी मारी हुई स्त्री कौन है ? यह नवाब सिराजुद्दौलाकी अतिशय रूपवती और प्रेयसी बेगम है! ___ बेगमने देखा कि एक युवती स्त्री दूरसे दौड़ती हुई आ रही है। ज्यों ही वह इतने समीप आई कि उसका मुख अच्छी तरह दिखलाई देने लगा, त्यों ही बेगम चिल्लाकर बोल उठी-" अरे, यह तो असामान्या है। अवश्य ही यह अपने पतिका खून करनेवाले नवाबके वैरका बदला लेनेके लिए मुझ कमनसीबके पास आरही है। मेरे ही लिए यह वर्षोंसे गाँव गाँव और वनपर्वतोंमें भटक रही थी। हाय! हाय ! Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72