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कभी कभी कहती है- हाय ! नवाबकी क्या दशा होगी ? भगवान् ! उस पर क्षमा करो -- बालजीवों पर क्रोध नहीं करुणा ही शोभा देती है !
अन्यायी नवाबके पापोंका घड़ा भर चुका । सतीके उत्तत उच्छ्वास अपना आश्चर्य जनक प्रभाव दिखलाये बिना न रहे । उस पतितात्मा पर अद्भुत कर्माविधिकी नजर जा पड़ी। बंगालके जमीं - दार और जागीरदार उत्तेजित हो उठे । उन्होंने नवाब के दमन करनेके लिए अँगरेजों से सहायता माँगी, जिसका परिणाम पलासीका भयंकर युद्ध हुआ । विषयलम्पट नवाब घावोंसे जर्जर होकर भागा परन्तु रास्ते में पकड़ लिया गया और बड़ी बुरी तरहसे मार डाला गया--और सो भी अपने जाति भाईयों के ही हाथोंसे ।
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इतने दिनोंके बाद आज हम असामान्याको मुर्शिदाबाद के कबस्तानमें देखते हैं | उसके पास ही नवात्रका निर्जीव शरीर लोहुसे लथपथ हुआ पड़ा है । सर्ता के स्वजन -बन्धु कह रहे हैं - " यह उसी जुल्मी नवाबकी लाश कैसी बुरी हालत में पड़ी है । दुर्बलोंकी ' आह कभी व्यर्थ नहीं जाती । देखो, विधिने हमारे बैरका बदला किस तरह चुकाया है ! " यह सब देख सुनकर सतीकी मोह निद्रा टूट गई । वह एकाएक जाग उठी और उसकी गई हुई बुद्धि फिर लौट आई | अपने पति की हत्याका वैर ले लिया गया, इस बातका खयाल करके मुरझाई हुई गुलाबकी कली फिर एक बार खिल उठी - सतीकी मुखमुद्रा पर परिहासका प्रकाश दिख गया ।
इसके बाद सती अपने घर गई, परन्तु थोड़ी ही देर में - कुछ ही घंटों पीछे दासियोंने रोरा मचाया कि सतीका पता नहीं है ! कहाँ गई और कैसे गई, किसीको कुछ भी मालूम नहीं है । ढूंढ खोज
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