________________
५४३
इन कार्रवाईयोंसे बहुत खुश हूँ। परन्तु बस, अब देर मत करो 'आँख आगेकी जुदाई अब सही जाती नहीं !'
असामान्या-नवाब साहब मैं फिर भी कहती हूँ कि आप होशमें आर्जाइए और अपनी इस बेवशीकी हालत पर विचार कीजिए। इस तरहकी पागलपनक बातें करना छोड़ दीजिए । मुझे आपकी दशा पर बड़ी ही दया आती है। ___ नवाब-प्यारी, अगर दया आती है, तो फिर देर क्यों कर रही . हो ? सचमुच ही मैं ( तुम्हारे लिए ) पागल हो रहा हूँ, परन्तु इस पागलपनके दूर करनेकी दबाई भी तो तुम्हारे ही पास है।
असामान्या-नवाब, तेरी होनहार अच्छी नहीं है, इसी लिए तू इस बुरी राहसे लौटना नहीं चाहता । तुझे मालूम नहीं है कि अभी थोड़ी ही देरमें मेरे स्वामी तुझे कितना कठोर दण्ड दे सकते हैं । वे बातकी बातमें तेरा सिर धड़से अलग कर देंगे और जमीनमें गाडकर किसीको पता भी न लगने देंगे कि तेरी क्या दशा
__ इस तरह असामान्याने बहुत कुछ समझाया और हर तरहकी धमकियाँ दी; परन्तु कामान्ध नवाबको चेत न हुआ । आखिर और कोई उपाय न देखकर उस आर्यपत्नीने जाकर अपने पतिको खबर दे दी।
मेहताबचन्द्रके क्रोधका ठिकाना न रहा । वह आते ही अपने कामदार जूतोंसे नवाब साहबकी पूजा करने लगा। जिन अपवित्र
ओठोंने हजारों सुशीला आर्याओंकी पवित्रताको अन्यायसे चूस लिया था, वे ही ओष्ठ आज एक वणिककी जूतियोंका चुम्बन कर रहे हैं ! इस समय नवाब साहबकी मुखमुद्रा देखने योग्य थी !
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org