Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 09
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 31
________________ ५३९ और अंगरेजीमें २० आवृत्तियाँ छप चुकी हैं । इस परसे पाठक अनुमान कर सकते हैं कि आपकी यह विद्या कितनी लोकप्रिय हुई है । यह पुस्तक आपकी ही पुस्तकका हिन्दी अनुवाद है । इंडियन प्रेस में इस विषयकी एक छोटीसी चार आनेकी पुस्तक बहुत वर्षों पहले छप चुकी है, उससे हिन्दी जाननेवाले इस विद्यासे थोड़ा बहुत परिचय प्राप्त कर चुके हैं। अब इस सम्पूर्ण अनुवाद से इस विद्या का सोपपपत्तिक ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। वकील साहबने यह अनुवाद करके हिन्दीका बडाभारी उपकार किया है। हम सिफारिश करते हैं कि प्रत्येक रोगी और निरोगी व्यक्तिको यह पुस्तक पढ़ना चाहिए । जो रोगी हैं वे इसके द्वारा रोगमुक्त हो सकेंगे और जो निरोगी है वे कभी रोग के पलेमें न फँसेंगे । जैनी भाइयों को तो यह पुस्तक अवश्य पढ़ना चाहिए। क्योंकि जैनियों के लिए तो इससे अच्छी शुद्ध और पवित्र चिकित्सा और कोई हो नहीं सकती । इसका 1 1 ( हम क्या खावें और क्या पीवें ' नामका अध्याय तो खाद्याखाद्यका विचार करनेवालोंके बहुत ही कामका है । कुहनी साहबने मद्यमांस आदिके भोजनका बडे जोरसे निषेध किया है। मनुष्य के लिए वे अन्न, दूध, फल आदिका भोजनही परमोपकारी बतलाते हैं । उनके विचार से जो भोजन जितनाही सादा, प्राकृतिक, तरह तरहके चटपटे मसालों से रहित और सहज प्रक्रियासे पकाया हुआ होगा वह उतना ही लाभकारी होगा। इस बहुमूल्य पुस्तक के कई दोष बहुत ही खटकते हैं । एक तो इसकी भाषा अच्छी नहीं, दूसरे छपाई अच्छी नहीं । इसमें जो चित्र दिये हैं वे इतने भद्दे छपे हैं कि 'उनसे न छपना अच्छा था । ३५. शिशु-शिक्षा — लेखक और प्रकाशक, श्रीयुत नारायण प्रसाद अरोड़ा, बी. ए. पटकापुर, कानपुर । पृष्ठसंख्या २२ मूल्य Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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