Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 09
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 29
________________ ५३७ दिखला लेवें । तब प्रकाशित करें । यह पुस्तक सेठ नाथारंगजी गांधी आकलूज निवासीके द्रव्यसे प्रकाशित की गई है। आजकल इस संस्थाका कार्य ठंडासा पड़ गया है । वर्षोंमें एकाध पुस्तक निकल जाती है । हिसाब तो इसका अब तक प्रकाशित ही नहीं हुआ। हम लोग आरम्भशूरतामें बहुत आगे बढ़ रहे हैं। ३३ परमात्माने पगले ( In his footsteas )- लेखक, पण्डित लालन । प्रकाशक, मेसर्स मेघजी हीरजी एण्ड कम्पनी, पायधूनी, बम्बई । मूल्य दो आना । इस छोटेसे गुजराती निबन्धमें महावीर भगवानके जीवनचरितसे शिक्षा लेनेकी-उनका अनुकरण करनेकी प्रेरणा की गई है । मालूम होता है, यह निबन्ध आगे और कई भागोंमें प्रकाशित होगा । इस भागमें श्वेताम्बर सम्प्रदायके ग्रन्थोंके अनुसार वीरभगवानके कई अनुकरणीय गुण बतलाये गये हैं-१ गर्भमें आनेपर भगवान्ने यह सोचकर-कि माताको कष्ट होगा-हलन-चलन बन्द कर दिया था । २ हलनचलन बन्द होनेसे माताने समझा कि गर्भ नष्ट होगया, इससे उन्हें बहुत कष्ट हुआ । तब भगवानने अपनी भूल सुधारी और फिर हलनचलन शुरू किया। ३ दीक्षा लेनेसे परमोपकारी माता पिताको कष्ट होगा, यह सोचकर भगवानने एक निश्चित समय तक दीक्षा न ली और इस तरह मातापिताके हितके लिए अपने लिए आर्त रौद्र ध्यान करनेसे उन्हें कुगतिका बन्ध न हो, इस खयालसे उन्होंने अपने मोक्षप्राप्तिरूप स्वार्थका बलिदान किया । इत्यादि । निबन्ध बिलकुल नये ढंगसे लिखा गया है और इस समयमें जब मातापिताकी भक्ति बहुत ही कम होती जाती है, ऐसे उपदेशोंकी आवश्यकता भी बहुत है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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