Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 09
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 30
________________ ५३८ ३४ आरोग्यता प्राप्त करनेकी नवीन विद्या (पूर्वार्ध ) लेखक और प्रकाशक, श्रोत्रिय कृष्णस्वरूप बी. ए., एलएल. बी., वकील, मुरादाबाद । पृष्ठसंख्या ४१४ । मूल्य ३१)। जर्मनीमें ' लुई कुहनी। नामके एक प्रसिद्ध डाक्टर हैं । आपने इस नवीन विद्याका आविष्कार किया है। यह विद्या है जलचिकित्सा । इसके अनुसार केवल ठंडे और गरमपानीके तथा आपके चार पांच प्रकारके स्नानोंसे शरीरके सब प्रकारके रोग आराम हो जाते हैं । अमीरसे लेकर गरीब तक सब इससे बहुत ही सुगमतासे लाभ उठा सकते हैं । हर स्थानमें विना किसी तरहके खर्चके यह चिकित्सा की जा सकती है । इसके अनुसार शरीरसम्बन्धी जितने रोग हैं उन सबका निदान एक ही है--जुदा जुदा रोगोंका जुदा जुदा निदान करनेकी कठिनाई इसमें नहीं है और इस लिए किसी डाक्टर या वैद्यका आसरा लेनेकी जरूरत नहीं रहती । शरीरके भीतर हानिकारक खराब पदार्थ एकत्र हो जानेसे रोग उत्पन्न होते हैं और यदि वे पदार्थ किसी तरह सुगमतासे निकाले जा सकें तो रोग शान्त हो जाते हैं। डाक्टर साहबके बतलाये हुए स्नानोंमें उक्त हानिकारक पदार्थों के अलग करनेकी विलक्षण शक्ति है । यह स्नान प्रक्रिया बहुत ही सहज है; परन्तु इससे कठिनसे कठिन रोग जो किसी भी प्रकारकी चिकित्सासे आराम नहीं हुए हैं आराम हो जाते हैं । संसारके सारे चिकित्सा शास्त्रोंको डाक्टर साहब अप्राकृतिक और हानिकारक बतलाते हैं । वे कहते हैं कि सब प्रकारकी चिकित्साओंसे रोग कुछ समयके लिए जबर्दस्ती दबा दिये जाते हैं परन्तु नष्ट नहीं किये जा सकते । कुहनी सा० की इस नई विद्याने संसारमें बड़ा आदर पाया है। आपकी इस विषयकी पुस्तकका संसारकी २५ प्रसिद्ध भाषाओंमें अनुवाद हो चुका है । जर्मन भाषामें इस पुस्तककी १०० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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