Book Title: Jain Hiteshi 1913 Ank 09
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 25
________________ ५३३ ३० आल्वम या चित्रसंग्रह-सूरतके दिगम्बर जैनके पिछले खास अंकमें जो चित्र निकले थे, उन सबका इसमें संग्रह है। सब मिलकर ५९ चित्र हैं। चित्रोंका विवरण भी साथमें दिया हुआ है। मूल्य बारह आना है । मँगानेका पता-सम्पादक दिगम्बर जैन, चन्दाबाडी, सूरत । ३१ पवनदत--लेखक, पं० उदयलालजी काशलीवाल । प्रकाशक, हिन्दी जैनसाहित्य प्रसारक कार्यालय, चन्दावाडी पो. गिरगांव-बम्बई पृष्ठसंख्या, ५६ । मूल्य चार आना। यह जैनसाहित्य सीरीजकी तीसरी पुस्तक है। इसमें श्रीवादिचन्द्रसूरिका संस्कृत पवनदूत काव्य और उसका हिन्दी भावार्थ है। विजयनगर नरेशकी सुतारा नामकी स्त्रीको अशनिबग नामका विद्याधर हरण कर ले गया। उसके विरहमें राजाकी बुद्धि ठिकाने न रही । उसने पवनको अपना दूत बनाया और उससे कहा कि तू परोपकारी है, मुझ पर दया कर और अमुक अमुक रास्तेसे इस इस तरह जाकर मेरी स्त्रीसे मेरा विरहकष्ट निवेदन कर और उसे धीरज बँधा । इसी कथानकको लेकर इस काव्यकी रचना हुई। कालिदासके मेघदूतकी छाया पर जिस तरह वायुदूत, हंसदूत, कोकिलदूत, पदा दूत आदि कई काव्य बने हैं उसी तरहका यह भी है । इसमें १०० श्लोक हैं। रचना प्रसादगुणविशिष्ट है । किसी किसी श्लोकका भाव तो बहुत ही मर्मस्पर्शी है। निर्णयसागरकी काव्यमालामें यह काव्य बहुत वर्षों पहले छप चुका है। परन्तु हिन्दी जाननेवाले उससे लाभ न उठा सकते थे। अब इस भावार्थसे साधारण हिन्दी जाननेवाले भी काव्यका आशय समझ सकेंगे। भावार्थ साधारणतः अच्छा लिखा गया है; परन्तु उसके लिखनेमें जितना परिश्रम करना चाहिए था उतना नहीं किया गया। कई श्लोकोंका आशय अस्पष्ट रह गया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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