Book Title: Jain Gitavali
Author(s): Mulchand Sodhiya Gadakota
Publisher: Mulchand Sodhiya Gadakota

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Page 11
________________ - ५० मा ५८ मोरे लाल ४८ जात करम कोपनियां सुघर चेतन बह पनियां को निकरी. ऐसे चेतनराय पनिया को निसरे. लाख चौरासी योनिमें भटकौ. कानासे आये कहां तुम जैहौ.. धन २ होवे रजमत वेटी. सजना हो मेरी शील चुनरिया. वाजें नेवरा घने आज अनन्द वधाये तो वाजें. चेतन राय कुमति निकारियौ. ६२ टांडी लाधे जोवन जरवा पूरव लाधे पश्चिम लाधे. ऐसे नेमीश्वर रसिया. जा नरदेही तुमने पायलई. १०१ घोरी ( सुनौजू) झूनागढ से तेजन आई. १०२ , (जू) नेमीश्वर को व्याहु बखानों. वन्दना तथा मुंडन के समय । २ हांजू श्रीभगवन्त भजौ अतिशय युत. प्रथम २ जिन पूजन को फल. ऐसे जनम नये धर २ के. ४३ भौरारे पात्र अपात्र कुपात्र जु भेव. चारों दान भली विधि देहु. ४५ , जिन दर्शन तें कह फल होय. ४६ , पंच परम सुमिरे सुख होय. ४४ "

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