Book Title: Jain Gitavali
Author(s): Mulchand Sodhiya Gadakota
Publisher: Mulchand Sodhiya Gadakota
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मोरे लाल ॥ ३ ॥ सती अंजना निर्जन बनमें सिंघ आय जय घेरी लाल ॥ देव सहाय भये इक छिनमें अष्टापद तन धारे मोरे लाल ॥४॥ पावक तें जल होय क्षणक में फन से माला होवे लाल | सागरसे थल होवे ज्ञानी सिंघ स्याल सम होवे मोरे लाल ॥ ५ ॥ धन २ भाग सुहाग मनोहर नरतन जनम सफल भयो लाल ॥ शील सिंगार विना सव निर्फल दयाचंद धारौ मोरे लाल ॥६॥
("वाजे नेवरा घने की चाल-विवाहमें) आज अनन्द वधाये तो वाजें नेवरा घने ॥देख समद विजयजूके लाल तो बाजे नेवरा घने ॥ टेक ॥ व्याहन झूनागढ़ आये तो वाजें नेवरा घने । सिवदिव्याके परम अधार तो वाजे नेवरा घने ॥१॥ साजे कृष्ण मुरारि तो वाजें नेवरा घने ॥ सव साजेसुर खग इन्द्र तो वाजें नेवरा घने ॥ २॥ जादों नृप सब साजियो बाजें नेवरा घने ॥ हय गय रथ असवार तो वाजें नेवरा घने ॥३॥ गीत किन्नरी गावें तो वाजें नेवरा घने ॥ अपचरा नचत बधाई तो वाजें नेवरा घने ॥४॥सव सज्जन मिल
आइयौ वाजें नेवरा धने ॥ श्रीउग्रसैन दरवार तो वाजे नेवरा घने ॥५॥ देख परम सुख पाइयौ वाजें नेवरा

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