Book Title: Jain Gitavali
Author(s): Mulchand Sodhiya Gadakota
Publisher: Mulchand Sodhiya Gadakota

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Page 114
________________ (जूनागढ़) से ग्राम सुघर शाही बनरारे॥१०॥ टीका होन को जब चले, लटकन बनरारे ॥ लाला पशु जिव करी है पुकार, सुघर शाही बनरारे ॥ ११॥ कृष्णहि तुरत वुलाइयो, लटकन वनरारे ॥ लाला ये जिव क्यों घिरवाये, सुघर शाही बनरारे ॥ १२॥ भील किरात बरात में, लटकन बनरारे ।। लाला इनको करें हो अहार सुघर शाही बनरारे ॥१३॥ सुनकर रथ से उतरे, लटकन बनरारे ।। लाला पशु जिव दये हैं छुड़ाय, सुघर शाही बनरारे ॥ १४ ॥ मौर उतार के धर दियौ, लटकन बनरारे ॥ लाला कंकन डारौ है टोर, सुघर शाही बनरारे ॥१५॥ गिरनारीकों चढ चले, लटकन वनरारे ।। लाला घर मन में वैराग्य सुघर शाही बनरार ॥ १६ ॥ ठाडे पिता समझावते, लटकन बनरारे । लाला भोगी हो भोग अपार सुघर शाही वनरारे ॥१७॥ भोग वुरे संसार में, लटकन वनरारे ।। लाला तात को यों समुझाय सुघर शाही बनरारे ॥१८॥ इतनी सुनी राजुल जबै, लटकन बनरारे ।। लाला गिरी है धरनि मुरझाय, सुघर शाही बनरारे ॥ १९॥ मात पिता समझावते लटकन वनरारे ॥ पुत्री क्यों करै सोच विचार, सुघर शाही बनरारे ॥ २० ॥ देशों से भूप वुलाय हों, लटकन बनरारे ॥अर फिरके रचहीं व्याह, सुघर शाही बनरारे ॥ २१ ॥ बात अजुक्ती का

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