Book Title: Jain Gitavali
Author(s): Mulchand Sodhiya Gadakota
Publisher: Mulchand Sodhiya Gadakota
View full book text
________________
कही, लटकन यनरारे ॥ तुम योलौ न बोल कुवोल, सुघर शाही वनरारे ।। २२।। तुम सम पितु सव कों लखों, लटकन वनरारे ॥ मेरे प्रीतम गये गिरनार, सुघर शाही वनरारे ॥ २३ ॥ गहनों उतार के रिंग चली, लटकन वनरारे । लाला पहुंची है प्रभुके पास, सुघर शाही वनरारे ॥ २४ ॥ हाथ जोर ठाडी भई, लटकन यनरारे ॥ प्रभु हम को दिक्षा देहु सुघर शाही वनरारे ॥ २५ ॥ दुर्द्धर तप उनने कियौ, लटकन वनरारे ।। लाला पहुंची है स्वर्ग मझार, सुघर शाही वनरारे।॥ २६ ॥ केवल पा प्रभु शिवगये लटकन वनरारे॥ प्रभु हम को पार लगाव सुघर शाही बनरारे ॥ २७ ॥
(१०८)
वनरा-व्याह में चाल (तुम्हें बुलाय गईरे वन्ना, सैन चलाय गईरे वन्ना)
तुम्हें बुलाय गहरे पन्ना, सैन चलाय गईरे पन्ना, चौतौ चेतन नारी तुम्हारी, तुम्हें वुलाय गई० ॥१॥ वौतौ सुमति सरीखी प्यारी, चौतो अनुभव सुखकरतारी, तुम्हें बुलाय गई० ॥ २॥ चौतौ शिवपुर की अधिकारी,वौती भव जीवन हितकारी,तुम्हें वुलाय गई। ॥३॥ चौतौ कुम करते न्यारी, चौती कहती है ललकारी, तुम्हें बुलाय गई० ॥ ४ ॥ चौतौ छोड़ कुमति से
गे, फिर पहुंचौ तुम शिव द्वारी, 'तुम्हें बुलाय गई०

Page Navigation
1 ... 113 114 115 116 117