Book Title: Jain Gitavali
Author(s): Mulchand Sodhiya Gadakota
Publisher: Mulchand Sodhiya Gadakota

View full book text
Previous | Next

Page 88
________________ ६८ परीषह सारी ॥ धरौ चरित तेरह विधि नीकें गिरवर वर शिवनारी ॥ ५ ॥ ( ८० ) ( गीत - वंदना के समय ) इक अरज सुनौ महाराज हमारे दुखित करम दूरी करौ ॥ टेक ॥ अरे हांहो कि प्रभुजी आठ करम दुखदाइया ते करावत भ्रमण अपार, हमारे दुखित करम दूरी करौ ॥ १ ॥ अरे हांहो कि प्रभुजी ज्ञानावरणी छाइयो तिन प्रकृति पंच परकार, हमारे० ॥ २ ॥ अरे हांहो कि प्रभुजी दर्शन आवरणी अबै नव भेद न दर्श कराय, हमारे० ॥ ३ ॥ अरे हांहो कि प्रभुजी, करम वेदी दो कही सिधार पयूष समान, हमारे० ॥ ४ ॥ अरे हांहो कि प्रभुजी मोह करम वारुणि समा सो खपर रूप आछाद, हमारे० ॥ ५ ॥ अरे हांहो कि प्रभुजी, श्रायु चार गति के विषै जा भरमावत अति क्रूर, हमारे ०||६|| अरे हांहो कि प्रभुजी नाम तिराएवे दुखभरी बहु नाम धराये मोह, हमारे० ॥ ७ ॥ अरे हांहो कि प्रभुजी करम गोत्र घर कृति समा जिमि ऊंच नीच जगमांहि, हमारे ॥ ८ ॥ अरे हांहो कि प्रभुजी अन्तराय पन विधि कहा "सब कार्य करै अन्तराय, हमारे० ॥ ९ ॥ अरे हांहो कि प्रभुजी ये वसु रिपु दूरी करौ मम पूरौ कीजे ज्ञान,

Loading...

Page Navigation
1 ... 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117