Book Title: Jain Gitavali
Author(s): Mulchand Sodhiya Gadakota
Publisher: Mulchand Sodhiya Gadakota

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Page 111
________________ (१०५) (सोहरौ जन्म समय) सव देवी छप्पन कुंवारी रुचकगिर वासनी कुलगिर वासनी हो ॥ करती माता जू की सेव परम सुख पावती हो ॥ टेक ॥ कोई दरपण लीयें हाथ, खड़ी सव साथ, दीप लिये थारी हो ॥ कोई गूंथें फूलन माल, वजावें ताल सुगावें ख्याला हो ॥ १॥ कोई माताको करती सिंगार, पहिरावती हार, आभूपण माला हो॥लिये पंखा ढोरेंहाथ नमा माय देवन कीवाला हो॥२॥ कोई चुन २ सेज विछावें, कोई मंगल गावें कोई पांय पलोटें हो। कोई पूंछतीं मिलकर बात धन्य यह स्यात मात समझा हो ॥ ३ ॥ प्रभु तीन ज्ञानके धारी, येक अवतारी गरभ में सोहें हो । ज्यों दर्पण में प्रतिबिम्ब मनोहर विंव सूर्य दुति होवे हो॥४॥ कळु गर्भ वेदना नाहिं, अकुलता नाहिं, पीत दुति नाही हो । तिन त्रिवलि भंग नहिं कोय, हर्ष हिय होय अतिशय प्रभु जानों हो ॥५॥ गर्भ कल्याणक महिमा सौहरौ भारी, कथा अति भारी हो। दश अतिशय हूँ जिनराय पावै को पारी, पावै को पारी हो ॥ ६॥ श्री आदीश्वर जिननाथ, जगत के नाथ, त्रिलोकी नाथ के सोहरे गावें हो ॥ दयाचंद चरण को चेरो दास है तेरो, दास है तेरी दरश नित पाव हा ।।शा

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