Book Title: Jain Gitavali
Author(s): Mulchand Sodhiya Gadakota
Publisher: Mulchand Sodhiya Gadakota

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Page 110
________________ महाराज, राज महाराज, आद्र से लीनीहो ॥ अर्ध सिंहासन राय बड़ौ सुखपाय बैठक तव दीनी हो॥६॥ प्राण वल्लभे चन्द्र मुखी, मृग लोचनी हे मृग लोचनी हो॥जग जीवन सुखकार परम सुखकार प्रागमन कहिये हो॥७॥ जग माता करजोरे, वचन धीरे वोले राय से बोली हो ॥ पिछली रैन भये सोलह स्वप्न मनोहर खम तासु फल कहिये हो ॥८॥ सुन राजा हँस बोले विहँस कर वोले प्रेम कर बोले सुनौ तुम रानीहो॥ह है आदि कुंवर अवतार प्रथम अवतार निश्चय हम जानी हो॥९॥ ये सुन रानी अानन्द भयो आनन्द हिये हुलसानी परम हुलसानी हो ॥ इहै श्री आदि कुंवर अवतार, कुंवर अवतार कूख अव जानी हो ॥ १०॥ श्री रिषभ देव, जिनदेव करें सुरसेव किन्नरी गावें किन्नरी गावे हो ॥ जहँ मंगल हों दिनरैन बड़े सुखचैन महासुखचैन सुनत सुख पावें हो ॥११॥ गावै जो ये सोहरौ मंगल कारी सवन सुखकारी सवन सुखकारी हो । ताके मंगल होंय दिनरैन बरै सुख चैन पडै नरनारी हो ॥१२॥श्रीश्रादीश्वर महाराज सुफल है काज सुफल होय काज भजी नरनारी भजौ नरनारी हो । दयाचन्द कह करजोर, कहैं करजोर शरण हों तोर वंदना म्हारी हो॥१३॥

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