Book Title: Jain Gitavali
Author(s): Mulchand Sodhiya Gadakota
Publisher: Mulchand Sodhiya Gadakota

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Page 89
________________ हमारे० ॥१०॥ अरे हांहा कि प्रभुजी श्राप अनेक मुगुन भरे, सोदीजे मैं धारो दाम, हमारे॥ ११ ॥ यर हाहो कि प्रभुजी पद पंकज सेवा मिले भव २ तुम संगति पाय, हमारे॥ १२ ।। अरे हांहा कि प्रभुजी अप करणा करके प्रभू मुझे दीजे यातम ज्ञान, हमारे ॥ १॥ अरे हांहो कि प्रभुजी श्राप तरी पर तारह हो, अय गिरवर को देव तार, हमार०॥ १४॥ (८१) (गीत-गाख नभाम) अय के हो भजलो भगवान फिर पीछ पछतायोगे ।। ॥ टंक ॥ अरे करह जाय निगोद बसे थे पंच गोल नहां दुख की थान ॥ कयह जाय नरक गति पहुंचे मात व्यसन के कर्ता जान ॥ १॥ यंर छेदन भदन शलाराहन पेलन यंत्र करॉनन यान ।। कुंभीपाक वैतरणी ग्वारी घंटाकार असिपत्र प्रमाए ।॥ २॥ अरे मज कंटकी लाल पृतली रांग गाल टाल मुग्वतान। ऊंट ग्रीय मुख आकृति यानी उछलन तड़फन चीरन थान |॥३॥ थर नारक जीव परस्पर मार असुर कृमार मिटा श्रान || नायक दुग्व की खयर तहां ही यहां तो मंतिम फहानाया अरे कयह जाय कुटिल भावन में पाई हो नियंग टर वान ।। भय थहार परिग्रह मधुन ये मंशा चारो मर

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