Book Title: Jain Gitavali
Author(s): Mulchand Sodhiya Gadakota
Publisher: Mulchand Sodhiya Gadakota
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८४
॥३॥ अरे हां मोरे प्रभु राजुल व्रत रथ बैठियौ,गिरवर नेमजी चलावनहार, तुम्हारे संग० ॥४॥
गीत-( हरसमय) कैसी करूं कहां जाऊं मोरी गुइयां पिया तो गये गिरनारी को ॥ टेक ॥ व्याहन आये निशान घुमाये करी बरात तयारी को ॥१॥ छल इक भयौ पशु जिय घिरवाये प्रभु व्रत लियौ ब्रह्मचारी को ॥ २॥ पिया सँग धाय तपस्या लीनी उग्रसैनकी कुमारी को ॥३॥ नेम प्रभु शिव पुर पद पायो अच्युत राजुल नारी को॥ गिरवर अरज करत प्रभु सन्मुख दीजे कर्म निवारीको॥४
गीत-(हरसमय) तुम मुनियौ हो दीन दयाल हमा सो तो उस चोरी को करहु न्याय, हमारी इक चोरी भई ॥१॥ मेरौ कुमति ज्ञान लियो लूट, हमारी इक चोरीभई ॥२॥ मेरौ शील विरत गयौ छूट, हमारी इक चोरी भई ॥३॥ मेरे दया धरम गयौ टूट, हमारी इक चोरी भई ॥४॥ वसु करमन कीन्हीहै लूट, हमारी इक चोरी भई ॥५॥ सो तो गिरवर शिव फल देहु अटूट, हमारी इक चोरी भई ॥ ६ ॥

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