Book Title: Jain Gitavali
Author(s): Mulchand Sodhiya Gadakota
Publisher: Mulchand Sodhiya Gadakota

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Page 103
________________ ८३ करें मोरे प्रभु काटौ करम के जाल, लाल करमन वश चौपड़ मड़रही हो ॥ ७ ॥ ( ९६ ) गीत - ( हरसमय ) येहो को रहो हरिया लै निकरौ कोवा भई समराई, हमपे करम मोहनियां डाली ॥ टेक ॥ जे चेतन रहे हरिया हरले निकरौ इन्द्री भई समराई, हमपे करम० ॥ १ ॥ येहो लोभ मोह दोई चाकर राखे क्रोधके संगे यारी, हमपै करम० ॥ २ ॥ ऐहो सात मनों की खेती करके आठ विषै रखवारी, हमपे करम० ॥ ३ ॥ कहें देवीदास सुनौ भाई जैनी श्रावक कुल अवतारी, हमपे करम० ॥ ४ ॥ येहो कर्म नाशकर शिव सुख पावो होय हृदय सुख भारी, हमपे करम० ॥ ५ ॥ ( ९७ ) गीत - ( हरसमय ) रथ ठाडौ करौ भगवान, तुम्हारे संग हमहू चलें बनवासा को ॥ टेक ॥। सो मोरे प्रभु काहे के रथला बने अरु काहे के जड़े हैं जड़ाव, तुम्हारे संग० ॥ १ ॥ अरे हां मोरे प्रभू चन्दन के रथला बने अरु मुतियों के जड़े हैं जड़ाव, तुम्हारे संग० ॥ २ ॥ अरे हां मोरे प्रभु रथला में को बैठिया अरु को भुलावनहार, तुम्हारे संग t

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