Book Title: Jain Gitavali
Author(s): Mulchand Sodhiya Gadakota
Publisher: Mulchand Sodhiya Gadakota

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Page 106
________________ लाड़लौ शिर चन्दनकी खौर सूनौजू ॥ कंठ श्रीदुलरी तिलरी छवि मोतिन माल सुहाइ सुनौजू ॥ माथे मुकुट कुंडल अति सोहें चंद सुरज दुरिजांय सुनौजू ॥ इत्यादिक वहु पहिर यदुनन्दन वाजे वजत अपार सुनौजू॥ इन्द्रादिक जाके भयेहैं बराती सुरपति चमर दुरांय सुनौजू॥ छप्पन कोट जादौं युत सँग हरि, हलधर पान खवाय सूनौजू॥ नर नारी सव मंगल गावें किन्नर नाद सुनावें सुनौजू॥मंगल गीत प सव वनिताहासविलास करांय सुनौजू ॥ हर्षित ब्रजनारी सव सुन्दर नाटक नृत्य करायँ सुनौजू ॥ इहि विधि घरात सजी नेमी प्रभुकी वर्णन कौन कराय सुनौजू ।। भविजन तजि सब राग रंगको गढ़ गिरनारी धाय सुनौजू ॥ शिवनारीको हाथ पकड कर ता सँग रमन कराय सुनौजू ॥ ऐसो नेमीश्वर व्याहु वखानी सब जन चित्त लगाय सुनौजू॥ (१०२) (गीत-ढाल घोरीकी-ब्याह में) नेमीश्वरको व्याहु बखानों लघुमति कही न जाईजू ॥ आगम पंथ पुरानन जानों सुनो भव्य चित लाईजू ॥ मनसा चंचल घोड़ी आई दुल्लह खेंच वुलाईजू ॥घोड़ी है जिनवानी समरस वाग सुलक्षण दाईजू ॥ तिहि घोड़ी चढि चलह लाड़लौ मुकति बधूको व्याहनजू ॥ सुरपति

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