Book Title: Jain Gitavali
Author(s): Mulchand Sodhiya Gadakota
Publisher: Mulchand Sodhiya Gadakota
View full book text
________________
७३
गुण छत्तीस गुण धारौ समताना ॥ ६॥ सत्रह नेम धरौ सदा सातो असनाना ॥ सात मौन धारौ सवै नव गो परखाना ॥ ७॥ पाठ ध्यान खोटे तजौ धारौ शुभ ध्याना॥ किरिया तीन तिरेपना धारौ मन दाना ।। ८॥ लाज आठ जागा नहीं कीजे भवि प्राना ॥ छह परिवतेन लाइयो षट् धरौ सयाना ॥९॥ पट् काया मन छेडियो तजि आच्छादाना ॥ वसु विधि श्री जिन पूजियो पावी वसु थाना ॥१०॥ मीठी वाणी बोलिये जीवन हित छानामत्सर ममता छोड़िये होवे कल्याणा ॥११॥ औषधि शास्त्र अभय तथा आहार सुदाना।। द्वारापेक्षण कीजिये विधि द्रव्य समाना ॥ १२ ॥ मिथ्या परणति परिहरौ पदलो गुणठाणा || राना रावल रंकिया सव करम बसाना ॥ १३ ॥ अपनी २ गरज के सारे दुनियाना ॥ तुम पर शल्य निवार के भजलो भगवाना ॥१४॥ किरिया से भोजन करौ पीवी जलछाना ॥ निशदिन ज्ञान विरागसों परखी निजध्याना ॥ १५॥रागद्वेष विषया सबै जु कषाय न भाना ॥ निन्हव गौरव छांडदो माडौ क्षपकाना ॥ १६॥ एक द्वितिय पण तीन हैं अठवीस जु ज्ञाना । छयालिस वसु पद तीसपन विस नमत सयाना ॥ १७॥ चांदी पुर बदली तनुज गिरवर मति. माना ।। विनवत है करजोर के दीजे शुभ थाना ॥१८॥

Page Navigation
1 ... 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117