Book Title: Jain Gitavali
Author(s): Mulchand Sodhiya Gadakota
Publisher: Mulchand Sodhiya Gadakota

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Page 97
________________ पुनि जाय पुरा वख्तयार ॥ पावापुर कुन्दनपुरी फिर गुना जी और विहार, हरप उर० ॥९॥ पंच पहाड़ी वन्दिये श्री राजग्रही मन धार ।। विपुलाचल, सोना गिरी इत्यादिक आनँद कार, हरप उर०॥ १० ।। बहुरि नगर पारा नमों अट्टाविस भवन निहार ।। काशी भेलू पुर विषं पुनि पुरी भदैनी त्यार, हरप उर० ॥ ११ ॥ सिंघपुरी चन्दापुरी सकटावन प्राग विचार ॥ कौसम्बीपुर वन्द के कटनी मुड़वाड़ा सार, हरष उर० ॥१२॥ वांदकपुर से आय के कुंडलपूर वन्दन कार॥ फिर वीना नैनागिरी पुनि नगर मडावर सार, हरप उर०॥ १३॥ नगर पपौरा टेरिया द्रोणागिरि चैत्य चितार ।। वैरसिया थूवौनजी पुनि वन्दों जिन खंदार, हरपउर० ॥१४॥ पचरारी वारागडा कोलारस पाटन चार ॥ जयति नगर कोटा श्री अरु नगर चंदेरी सार, हरष उर०॥ १५॥ गोलाकोट सागौद् सौ रे दक्षिण चन्दनकार ।। गिरनारी श→जये श्री ऋषभ जिनेश्वर सार, हरपउर० ।।१६।। गर्भ जन्म तप ज्ञान सां निर्वाण गये असरार ।। तिनकों बन्दों भाव सों ते दुखहर आनंदकार,हरप उर० ॥१७॥ मो उर ज्ञान जगौ जवै तव देखे नैन पसार ।। गिरवर दास तनी अचं प्रभु कोज भवदाघ पार, हरष उर धारि के०॥१८॥

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