Book Title: Jain Gitavali
Author(s): Mulchand Sodhiya Gadakota
Publisher: Mulchand Sodhiya Gadakota

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Page 81
________________ पने ममु घर रही ।।टेक॥ समुद्र विजय नृप तातजी शिव देवी तुम्हारी माय, ॥ छप्पन कोटी यादवासय और पि. भव अधिकाय, यालपने प्रच-॥१॥ गजकुमार हरि पति किसन पुनि हलघर से है भाय, || राज मती प्रमुखी सती हैं इत्यादिक सुखदाय, यालपने प्रहः॥ २॥ इन को तजि प क्यों भजी शेपावन (सहस्राम्र यन )में जाय, ॥ गिरनारी शिवपति चरण तहां बन्दे गिरवर जाय, बालपने प्रभु घर रही हो नेमनाथ जिनराय॥३॥ (दादरा हरसमय) नेम विन नहीं रही दिन रैन घटी पल याम ॥ टेक॥ भोजन पान नहान, जे रस गंध विलेपन जान नीत नि. रत ताम्बूल जे मैथुन पुनि वस्तु प्रमान ॥ टेक ॥ १॥ श्राभूपए वाहन गमन सेज्यासन सचिन पग्वान ॥ इहि विधि सत्रह नेम जे धारी नित हिन कल्याण ॥२॥ हिंसा झूठ कुशील चोरि तज परिग्रह की परमान ।। दि. गनत देश अनथे जु घारी मन यच तन कर मान || ॥ सामायिक प्रोषध करो दाई भोगन संख्या ठान ।। - तिथि संविभागकरी जे यारह व्रत महान ॥ ४॥ पृथ्वी जल श्रम अनिल सु पुनि पवन वनस्पति काय ॥ थायर पंचन घातिये इन घातें पाप पंवाय या प्रम काया को

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