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(दादरा-हरसमय) निश भोजन दुख दाई, तजीमन वच तन भाईटिका। निश के मांहि रसोद्द करत ही जीव मरें अधिकाई ।। जोर धुंवा को अगनि की ज्वाला गिनती कौन यताई ॥१॥ एक दिया में जीव असंखे देखत ही मरजाई ।। टयाचन्द भोजन के माही जीव गिरें अधिकाई ॥२॥
(दादरा-हरममय) श्री वामा जू के प्यारे ॥ हमें गिनियों नहिं न्यारे ॥ टेक ॥ अंजन चोर महा अघ करना क्षणमें पार इ. तारे॥ गौतम विज मिथ्यान दर कर गणधर पद दातारे ॥ १ ॥ शूकर सिंह नकुल अफ चांद्र श्रीगुण नाहिं गिचारे।। दद्याचन्द चरणन को चरी ही तुम तारन होगा।
(दादरा-हरममय) धरम धन जोडियो मारी गुढ़याँ, जगन मुग्य मादिगा मोरी गुइँया ॥ टेक ॥ के मोरी गुदया हिंसा को करी ए. रिहार दया जीव पालियो मारी गुइयां ॥ १॥ मार्ग गुइयां चोरी बड़ी दृग्व ग्वोरी राज दुग्न दयरी मारी गु. ईया ॥२॥ के मोरी गुइयां ही बड़ीही म्बाटी मांग