Book Title: Jain Gitavali
Author(s): Mulchand Sodhiya Gadakota
Publisher: Mulchand Sodhiya Gadakota

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Page 82
________________ दाल के सब जीव समान लखान ।। चौदह उन्निस और सतावन अबाउनवै मान ॥ ६॥ जीव द्या नित कीजिये जो सार धर्म का चिन्ह ।। धर्म करता जीव जो पावे प द्वी अजघन्य।॥ ७॥ इहि विधि दिन प्रति घारियो क्रिया व्रत नेम महान ॥ गिरवर चंदीपुर नमो चोवीसी अनुपम थान ॥५॥ (६८) (दादरा-हरसमय) सिडन को शीस नमाऊं, सदा जिनके गुण गाऊं ।। टेक ॥ लोक शिखर के शीश विराजे तिनको ध्यान लगाऊं ॥ अजर अमर नितही अविनाशी चिन्मूरत मन लाऊं ॥१॥ सम्यक् दर्शन ज्ञान अगुरु लघु ने आठों गुन गाऊं ॥ दयाचन्द तिन चरण कमल को हियरा मांझ मडाऊं ॥२॥ (६९) (दादरा-हरसमय) नरभव रतन गमाया, धरम को भेदई न पाया टेका। निशदिन भूल रहे विषयन में ज्यो तरवर की छाया ।। कुगुरु कुदेव करी बहु सेवा विरथा काल गमाया ॥१॥ जिनवाणी निजकान सुनीना हिरदं ज्ञान न पाया। दयाचन्द जिन मत सेये विन जग का पार न पाया ॥२॥

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