Book Title: Jain Gitavali
Author(s): Mulchand Sodhiya Gadakota
Publisher: Mulchand Sodhiya Gadakota

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Page 73
________________ ५३ (५७) (“ मोरे लाल" की चाल-हरसमय) कहना से तुम आये वारे हंसा कहना को तुम जाव मोरे लाल ॥१॥ अग्गम दिशासे आये मोरे हंसा पश्चिम दिशाको जॉय मोरे लाल ॥२॥ कहा संग ले आये वारे हंसा कहा संग लेजाव मोरे लाल ॥३॥ मुठी बांधके आये वारे हंसा हाथ पसारे जाव मोरे लाल ॥४॥ ऐसी करनी कर चलो हंसा फेर न जगमें श्राव मोरे लाल ॥५॥ लाल विनोदी अरज करत है मनुष जनम फल पाव मोरे लाल ॥६॥ (५८) ("मोरे लाल" की चाल-विवाहमें) धन २ होवे रजमत बेटी जिनवरसे वर पाये मोरे लाल ॥ टेक ॥ सजी बरातें प्राइँ झूनागढ सुर नर खग हरषाये मोरे लाल ॥१॥ छप्पन कोट संग यदुवंशी चतुरंग सेना लाये मोरे लाल ॥ २॥ एरावतपर सोहें प्रभूजी माथे मुकुट सुहाय मोरे लाल ॥ ३ ॥ कानन कुंडल हाथन चूरा सोहै रतन जड़ाउ मोरे लाल ॥४॥ कंठ सिरी दुलरी छवि छाजे मोतिन माल सुहाइ मोरे लाल ॥५॥ कर कंकण की शोभा न्यारी पायन मोजे जराव मोरे लाल ॥६॥ कटि किंकणि करधौनी सोहै

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