Book Title: Jain Gitavali
Author(s): Mulchand Sodhiya Gadakota
Publisher: Mulchand Sodhiya Gadakota

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Page 71
________________ कह भीतर चलवी होय मोरे लाल ॥८॥पकर छिगु रिया भीतर लैगये तखत दये लटकाय मोरे लाल ॥९॥ चारों भाई बैठे तखत पै शोभा वरनी न जाय मोरे लाल ॥१०॥इंजन विजन और निगौना रहनके दश दौना मोरे लाल ॥११॥ चरी कचौरी अरु मैदा की बेरौ पापर ल्याव मोरे लाल ॥ १२॥ सेमें (बालौरें) बनाई अधिक रसीली केरा छोंक बघारे मोरे लाल ॥१॥ सोनेके थाल परोसे जनकजू रूपेके वेलन दूध मोरे लाल ॥१४॥ठाडे जनकजू अरज करत हैं कुंवर कलेऊ होय मोरे लाल ॥ १५॥ कुंवर कलेऊ जवहि जु हुइ है हमरी नेग ल्याव मोरे लाल ॥ १६ ॥ हाथ जोरके अरज करत हैं हम क्या देवे सक मोरे लाल ॥१७॥तुम तो हौ राजन के राजा हमका देवे लायक मोरे लाल ॥ १८ ॥ गोवर को गुवरारीदीनी, पानीको पनिहारी मोरे लाल ॥ १९॥ झनझन भारी गंगाजल पानी कुंवर कलेवा होय मोरे लाल ॥ २०॥ सारी सराजे गारी गावें सारे लगावें पान मोरे लाल ॥ २१ ॥ बीड़ा चावत बाहिर निकसे पांवडी दई हैं लुकाय मोरे लाल ॥ २२॥ हमरी पांवडी कौने लुकाई हमको जल्दी बताव मोरे लाल ॥ २३ ॥ तुमरी जु कहिये ललिता सारी ताने दई हैं लुकाय मोरे लाल ॥ २४ ॥ पांवडी तुमरी जवही मिल है हमरौ नेग ल्याव

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