Book Title: Jain Gitavali
Author(s): Mulchand Sodhiya Gadakota
Publisher: Mulchand Sodhiya Gadakota

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Page 61
________________ ४१ ॥ १० ॥ आठ अंग युत वन्दे देव मनुयां मन भारारे ॥ गद्य पद्य स्तुति कर सेव मनुओं मन भौंरारे ॥ ११ ॥ बहुविधि फिर २ नमन कराय मनुयां मन भौरारे ॥ चारों दिशिमें इहि विधि भाय मनुयां मन भारारे ॥ १२ ॥ फिर परिक्रमा दीजे तीन मनुयां मन भौंरारे ॥ त्रिधा रोग तहां कीजे छीन मनुयां मन भारारे ॥ १३ ॥ जप नमोकार सुनिये जिनचैन मनुयां मन भौंरारे ॥ तत्र धरौ समता थल एन मनु मन भौंरारे ॥ १४ ॥ पुनि सम्पुट युग मस्तक नाय मनुयां मन भारारे ॥ इस विधिदर्शन प्रीति लगाय मनुयां मन भारारे ॥ १५ ॥ मनोरमा जिनदर्शन कीन्ह मनु मन भारारे ॥ जिन दर्शन हठव्रत परवीन मनुयां मन भौंरारे ॥ १६ ॥ कमलश्री जिनदर्शन धार मनुयां मन भौरारे ॥ इत्यादिक यह जीव अपार मनुयां मन भाँरारे ॥ १७ ॥ जिन दर्शन शिव सुखको देत मनुयां मन भौरारे ॥ तिनको भविजन उर घर लेत मनुयां मन भौंरारे ॥ १८ ॥ जिनदर्शन विन पशू समान मनुयां मन भरारे ॥ दर्शनसे पाव निर्माण मनु मन भरारे ॥ १९ ॥ जिनदर्शनसे शिव सुख होय मनुयां मन भरारे ॥ जिनदर्शन सम पुन्य न कोय मनु मन भरारे ॥ २० ॥ तातं दिन प्रति दर्शन धार मनु मन भौंरारे ॥ सो गिरवर पावै सुख सार मनुयां मन भरारे ॥ २१ ॥

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