Book Title: Jain Gitavali
Author(s): Mulchand Sodhiya Gadakota
Publisher: Mulchand Sodhiya Gadakota

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Page 66
________________ ४६ सम्हारौ नातर फिर पछताया कि धीरें २॥७॥ दुर्लभ नर भव पाय लई है फिर पावे की नइयाँ कि धीरें २-स ॥ ८ ॥ जिनमत गारी रची चंदेरी गिरवर दास जु बनियाँ कि धीरे २ ॥ ९ ॥ ( ५० ) ( " सुनौजु ” की चाल व्याहमे ) लाख चौरासी योनि में भटकौ पुनि कुल कोड़ि बताउं सुनौजू ॥ टेक ॥ पृथ्वी, अगनि, पवन, जल इनकी सात २ लख गाऊं सुनौ ॥ १ ॥ इत्तर निगोद, नित्य गोलक के सात २ लख पाऊँ सुनौजू ॥ २ ॥ तरु दस लाख कहे इम थावर बावन लाख गिनाऊं सुनौजू ॥३॥ बे, ते, चौ इन्द्री दो २ लख पँच इन्द्री पशु चार सुनौ ॥ ४ ॥ ऐसे बासठ लाख कहे सब तिर्यचन समझाऊं सुनौजू ॥ ५ ॥ सुर नारक व २, नर चौदह लाख चौरासी जनाऊं सुनौ ॥ ६ ॥ अब कुल कोड़ि पृथ्वी वाइस लख पौन वारि सत सात सुनौजू ॥ ७ ॥ अनल तीन तरु आठबीस लख बेइन्द्री लख सात सुनौजू ॥ ८ ॥ ते इन्द्री वसु चौइन्द्री नव अहि नव थल दस लाख सुनौजू ॥९॥ जलचर साड़े बार गगन पति बारह लाख जताऊं सुनौज ॥ १० ॥ नर चौदह नारक पच्चीसों सुर छब्बिस बतलाऊं सुनौजू ॥ ११ ॥ शतक एक साड़े निन्याऊं

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