Book Title: Jain Gitavali
Author(s): Mulchand Sodhiya Gadakota
Publisher: Mulchand Sodhiya Gadakota

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Page 68
________________ बिया मोरे श्रात्मा || निशि भोजन बिदल न खाय ह. मारे प्रात्मा ॥१॥ बहु बीजक बैंगन कहे मेरे श्रात्मा संघाना (अथाना) कधी न खाय हमारे प्रात्मा ॥२॥ बड़ पीपल कठऊमरा मेरे प्रात्मा ॥ ऊमर पिलकर त्रस थाय हमारे प्रात्मा ॥ ३॥ बिन जानौ फल ना भखौ मेरे प्रात्मा ॥ सब कन्द मूल सुतजाय हमारे आत्मा ॥४॥ विष माटी मक्खन तजौ मेरे आत्मा।। मद मांस तजौ दुखदाय हमारे प्रात्मा ॥५॥ छोटौ फल मत खाइयौ मेरे प्रात्मा ॥ रस चलित वस्तु नहिं खाय ह. मारे अात्मा ॥ ६॥ फूल तुखार अखाद्य है मेरे अात्मा ॥ इत्यादिक और गिनाय हमारे अात्मा ॥७॥ जे वावीस अभक्ष हैं मेरे आत्मा ॥ इनके फल दुर्गति जाय हमारे प्रात्मा ॥८॥ तातें इनको त्यागिये मेरे प्रात्मा ॥ ये भव २ में दुखदाय हमारे प्रात्मा ॥९॥ धर उत्तम कुल प्राचार हमारे प्रात्मा ॥ सो तो गिरवर प्रभु गुण गाय हमारे प्रात्मा ॥१०॥ (५३) (“ प्रभुजी" की चाल-भोजनके समय ) देवन देव स्वामी जिन अपने को सुमरण के गुण गाऊ कि प्रभुजी ॥ गगन मँड़न मोरे सजना बसत हैं उनहीं यात जिमाऊं कि प्रभुजी ॥१॥ काहे की पातल

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