Book Title: Jain Gitavali
Author(s): Mulchand Sodhiya Gadakota
Publisher: Mulchand Sodhiya Gadakota
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शीतल भद्दलपुर विषै जिनखामीजी, कपिल्ला विमल जिनेश जन्मन प्रगटाये ॥७॥ कांई रत्नपुरी वृषनाथजी जिन खामीजी, जय हस्तनागपुर जान जन्मन प्रगटाये ॥८॥ कांई मल्लिनाथ नमिनाथजी जिनखामीजी मिथिलापुर नमत सुरेश जन्मन प्रगटाये ॥९॥ कांई सुव्रत राजग्रही विर्षे जिनस्वामीजी, काई द्वारावति नेम जिनेश जन्मन प्रगटाये॥१०॥ कांई कुंडनपुर महावीरजी जिन स्वामीजी, कांई बन्दौं जिन चौबीस जन्मन प्रगटाये॥११॥ कांई जब श्रावक ग्रह पुत्र है जिनस्वामीजी, तव करौ बधावौ येहु जन्मन प्रगटाये ॥ १२॥ कांई खोटे गीत छुड़ायके जिनस्वामीजी, भवि पढिये मन वच काय जन्मन प्रगटाये ॥ १३ ॥ कांई पुत्र सुलक्षण ऊपजे भवि प्राणी हो, निज तात मात सुखदाय जन्मन प्रगटाये ॥ १४ ॥ कांई अनुक्रम पंडित पद लहै भवि प्राणीहो, कांई भोगै भोग विलास जन्मन प्रगटाये ॥ १५॥ कांई पीछे शिवमारग लहै जिनस्वामी हो, कांई सर्व दुःख क्षय जाय जन्मन प्रगटाये ॥१६॥ कांई हम तुम को सब जीवन को जिनस्वामीजी, कांई गिरवर होउ सुखदाय जन्मन प्रगटाये ॥१७॥

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