Book Title: Jain Gitavali
Author(s): Mulchand Sodhiya Gadakota
Publisher: Mulchand Sodhiya Gadakota

View full book text
Previous | Next

Page 55
________________ दृष्टि लगाये ॥४॥ शिव वनरी व्याहन को उमहे, ज्ञान अनन्त लहाये ॥५॥ गिरवर दास व्याहु यो उत्तम जगतें पार लगाये ॥६॥ (३८) ("बड़े गरजी" की चाल-विवाह फागमें) वे तौ चेतन खेलत फाग हमारे बड़े गरजी ॥ टेक ॥ वे तो आतम रस सम्यक गुण गारे, बड़े गरजी ॥ वे तौ ज्ञान गुलाल गंगजल डारे, बड़े गरजी ॥१॥ वे तौ शील पिचकले दाय निहारें, बड़े गरजी॥वे तौ भरि २ सुमति नारि पर डारं, बड़े गरजी ॥२॥ वे तौ सुमति सैन करि कुमति बिडारे, बड़े गरजी ।। वे तो निजानन्द थिरता रस धारें, बड़े गरजी ॥३॥ वे तो वारह भावन सुभट सम्हारें, बड़े गरजी ॥ तहां बाजें त्रयोदश चंग नगारे, वडे गरजी॥४॥ तौ सोलह कारण भावत प्यारे, बड़े गरजी ॥ वे तौ वुध गिरवर यह सीख सुना रे, बड़े गरजी॥५॥ (३९) (“भौंरारे" की चाल-विवाहमें ) • भ्रमत २ बहु काल गमायौ सुन भौंरारे ॥ काल अनन्त निगोद वसायौ सुन भौंरारे ॥ टेक ॥ तिन की कथा कहै को गाई, चेतौ चेतन राई सुन भौंरारे ॥१॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117