Book Title: Jain Gitavali
Author(s): Mulchand Sodhiya Gadakota
Publisher: Mulchand Sodhiya Gadakota

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Page 58
________________ राजा सुनें तो दंड करेय मनु मन भौंरारे ॥ यातौ कथा या भव तनी मनु मन भौंरारे ॥२॥ श्रागे का गति होय सुनौ मनु मन भौंरारे ॥ नके भूमि जब पहुंचे जाय मनु मन भौंरारे ॥३॥ लोह पूतरी अंग भिड़ा सुनौ मनुत्रां मन भौंरारे ॥ ताँवो सीसौ औंट पिावें मनुआँ मन भौंरारे ॥ ४ ॥ कहैं देवीदास सुनौ गोपाल मनु मन भौंरारे ॥ परतिय, सेयें ये दुख होय मनुप्रा मन भौंरारे ॥५॥ (“भौंरारे" की चाल-वंदना मुंडन आदिमें) पात्र अपात्र कुपात्र जु भेव सुनौ मनुआं मन औरारे॥ पन्द्रह भेद कहे जिनदेव मनुनां मन भौंरारे ॥१॥तिनमें पात्र दान शिव दाय मनु मन भौंरारे ॥ और सबहि जगमें भरमाय मनुप्रां मन भौंरारे ॥२॥ दान बिना घर असान समान मनु मन भौंरारे ॥ दान से पावे वर्ग विमान सनु मन भौंरारे ॥३॥ दान करें घर होय पवित्र मनु मन भौंरारे॥ दान विना निर्फल सब कोय मनु मन भौंरारे ॥ ४॥ दान करौ भामंडल जी मनु मन भौंरारे ॥ दान करौ श्रीषेण अती मनुश्रां मन भौंरारे ॥५॥ दान करौ नृप शेखर पीठ मनुत्रां मन भौंरारे ॥ तीर्थंकर पद पाय सदीव मनुभां मन

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