Book Title: Jain Gitavali
Author(s): Mulchand Sodhiya Gadakota
Publisher: Mulchand Sodhiya Gadakota

View full book text
Previous | Next

Page 54
________________ ३४ ॥ टेक ॥ स्वामी इन्द्रादिक सब देव सदा जिनके गुण गावें जू ॥ स्वामि पै चौसठ दुरते चौर छत्र शिर तीन विराजें जू ॥ १ ॥ स्वामी सिंघासन छविदार कहा कवि उपमा गावें जू ॥ स्वामी भामंडल पिछवार भानु कुति कोट लजावें जू ॥ २ ॥ स्वामी अंतरीक्ष भगवान आप कमलासन राजें जू ॥ स्वामी देव करें जयकार हुँदभी नाद बजावें जू ॥ ३ ॥ स्वामी वाणी अमृतरूप सकल गणधर समझावें जू ॥ स्वामी दोष अठारा रहित सहित छयालिस गुण राजें जू ॥ ४ ॥ स्वामी केवल रूप स्वरूप भाल शत इन्द्र नमावें जू ॥ स्वामी अतिशय हैं चौतीस कौन हम उपसा गावें जू ॥ ५ ॥ स्वामी वर्णन पर - पार पार गणधर नहिं पावें जू ॥ स्वामी दयाचन्द कर जोर चरण को सीस नमावें जू ॥ मोरौ सब भईयन सिरदार - ॥ ६ ॥ ८ ( ३७ ) ( " वनरा " विवाह में ) व्याहन सुकति पुर धाये, चेतन वनरा वन आये ॥ टेक ॥ मायें हो दिक्षा धारी जी चेतन, मन वच योग लगाये ॥ १ ॥ कानन जिनवानी सुन चेतन जा में ज्ञान समाये ॥ २ ॥ गले पहिन जिन नामकी माला, भव दधि पार लगायें ॥ ३ ॥ हिरदेमें सुमिरें पंच परम गुरु नासा

Loading...

Page Navigation
1 ... 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117