Book Title: Jain Gitavali
Author(s): Mulchand Sodhiya Gadakota
Publisher: Mulchand Sodhiya Gadakota

View full book text
Previous | Next

Page 52
________________ ॥६॥ त्रेपन किरियां दाँजनी बनाकी मोरी गरज से जाव, सुमति बिन अडरहौ धनरा ॥७॥ याचन्द प्रभु थारौ हाँ सेवक मोरी अटक सुलझाव, सुमति बिन अड़ रही वनरा ॥ ८॥ (३४) (वनरा-विवाहमें) "हियरेसे लगा लेती बनरे, जो चुनरीको छोड़ की चाल. सुमति कहै सुन चेतन बनरे मानौ वचन अमोल ॥ सुख सांचौ बता देती बनरे, जो कुमती को छोड़ शिव रमनी मिला देती बनरे जो कुमती को छोड़ ॥ टेक ॥ केसरिया बागौ पहिरौ राजा बनरे शील कौ परम अमो ल, सुख सांचौ बता देती बनरे-॥ १॥ माथे मौर धरौ राजा बनरे समकित परम अमोल सुख सांचौ बता देती बनरे-॥२॥ हाथन कंकण पहिनौ राजा बनरे रत्नत्रय परम अमोल, सुख सांचौ बता देती बनरे-॥३॥हिय को हार बनाव राजा बनरे द्वादश व्रत अनमोल, सुख सांचौ बता देती बनरे-॥ ४॥ कानन कुंडल अजब अनोखे गुरु के वचन अमोल. सुख सांची बता देती बनरे॥५॥ ध्यान तुरंग सजौ राजा बनरे, समता गज अन मोल, सुख सांचौ बता देती बनरे जो कुमती को छोड़ ॥६॥ याचन्द शिव मग गहु बनरे जहँ है सुक्ख अतौल,सुख सांचौबता देती बनरेजो कुमतीको छोड़ ॥७॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117