Book Title: Jain Gitavali
Author(s): Mulchand Sodhiya Gadakota
Publisher: Mulchand Sodhiya Gadakota

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Page 43
________________ ॥१॥ तला किनारे दृष्टि पसारी मिलगये सतगुरु याराना, मोरे रामाना ॥२॥ सुघर चेतन बहु सुमती दारी मुनि चरणन चित धाराना, मोरे रामाना ॥ ३ ॥ दोह मिल रमत रहें निज मन्दिर अपनी रूप विचाराना,मोरे रामाना ॥४॥ गिरवर दास शील व्रतपाले पहुंचे भव: धि पाराना, मोरे रामाना ॥ ५ ॥ (“ मैने हटकी थी मैंने वरजीथी"की चाल-व्याहमें) मैंने हटकी थी मैंने घरजी थी तुमती कर्म की संगति नाहिं तजी ॥ टेक ।। जय जे कर्म उदय द्वै आये, तिन की सुधि बुधि सर्व भुलाये मैंने हटकी थी-॥ १॥ साता असाता उदय हाय आये, मिश्रित कर्म रहौ तहां छाये मैंने हटकी थी-॥ २॥ राग द्वेप की क्या थिति होय, इनकी थिति नर्कन तक होय मैंने हटकी थी-॥ ३॥ होव मुखी इनको देव छोड़,विषय कपायन ते मुख मोड़ मैंने हटकी थी-॥ ४॥ कहै देवीदास सुनी हो गुपाल, जिनमत गारी है गुनपाल मैंने हटकी थी॥५॥ (२४) (“ सुनत हो" की चाल-व्याहमें) हो चेतन गुणराय सुनत हो, हो चेतन गुणराया।टेका। काल अनन्त निगोद गमायौ इकइन्द्री तन पाय, सुनत

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