Book Title: Jain Gitavali
Author(s): Mulchand Sodhiya Gadakota
Publisher: Mulchand Sodhiya Gadakota

View full book text
Previous | Next

Page 46
________________ २६ ॥ १२ ॥ सकल गुणन कर पूरन जिनवर नमलै गिरवर भाल, सुनत हौ ॥ १३ ॥ ( २७ ) ( " सुनतहौ " की चाल. विवाहमें ) जगते भगते सोइयौ चेतन राय करम फन्द निनुचारौ, सुनत हौ ॥ टेक ॥ पंच उदंवर तीन मकार पुनि सात व्यसन परिहारौ, सुनत हौ ॥ १ ॥ सप्त तत्व अरु नौई पदारथ वारा तप व्रत धारौ, सुनत हौ ॥ २ ॥ कठिन २ कर नर भव पाई जप तप धर्म प्रचारी, सुनत हौ ॥ ३ ॥ देवीदास की लघु कविताई जिनमत बात विचारौ, सुनत हौ ॥ ४ ॥ ( २८ ) ( " नौवद पै डंका लागोहो " की चाल-विवाहमें ) नौवद पै डंका लागौ हो, नौबद पै डंका ॥ टेक ॥ दोय घड़ी जब रात गई है तब सब कारज त्यागौ हो ॥ १ ॥ बालक, जठर, युवा, नरनारी जिन मन्दिर को भागौ हो ॥ २ ॥ कर पग धोय मल जल सेती वन्दन मन अनुरागौ हो ॥ ३॥ गद्य पद्य युति कर जिन आगे नाय माथ क्षिति लागौ हो ॥ ४ ॥ कर सम्पुट युग जप नवकारे शब्द अर्थ मन पागौ हो ||५|| करत आरती धरत हरष उर मोह तिमिर सब भागौ हो ॥ ६ ॥ फिर सुनिये जिन

Loading...

Page Navigation
1 ... 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117