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(चाल "हांजू" वन्दना मुंडनादिके समय) ऐसे जन्म नये धर २ के काल अनादि गमाये कि हांजू ॥ टेक ॥ गर्भ विर्षे नाना दुख सहकर जन्म कष्ट करि पाये कि हांजू ॥काम क्रोध मद लोभ सुकर २ पाप अनेक कमाये कि हांजू ॥१॥ देव धर्मगुरु ग्रंथ न जानो करौ कहा जग आये कि हाजूं ॥ तीरथ व्रत अरु सन्त न माने जीव दया न सुहाये कि हांजू ॥२॥ काम सर्प की लहर सतावे चेतन क्यों सुख पावे कि हांजू तृष्णा वश नित भ्रमत रहत है मन सन्तोष न आवे कि हांजू ॥३॥ आये कहां तें ? करत कहाहौ ? क्यों निज सुधि बिसरावे कि हांजू ॥ मोह महा मदिरा के माते हित अनहित न दिखावे कि हांजू ॥ ४॥ पूजा करे न पुराण सुने कहुं पशुसम जन्म गमावे कि हांजू ॥ बाल तरुणपन ऐसहि खोवे विरधापन जव आवे कि हांजू ॥५॥ तनको जोर तनक नहिं रहियो नैनन नाहिं सुझावे कि हांजू ॥ सुने न कान बात नहिं बूझै बूढौ अब पछतावे कि हांजू ॥ ६॥ नारी पूत कही नहिं माने परौ २ बिल्लावे कि हांजू ॥ रोग अनेक उद्य जव अावें तब बहुविधि दुख पावे कि हांजू॥ ७॥ मरती बिरियां सोच करत है कोऊ नाहिं बचावे कि हांजू ॥ दान पुण्य