Book Title: Jain Gitavali
Author(s): Mulchand Sodhiya Gadakota
Publisher: Mulchand Sodhiya Gadakota

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Page 26
________________ मुख लेकर अन्तिमजिन शिरनायौ कि हांजू ॥ मरके वर्ग लोक सुख पायौ मेंडक चिन्ह लखायौ कि हांजू ॥४॥ सेठ सुहालिक बहुविधि चरकर श्रीजिन पूजन ठायौ कि हांजू॥राज रिडि सुख भोग धार तप शिवपुर पदवी पायौ कि हांजू ॥५॥ जिनको दीप चढा विनयंधर सेठ सुरग फल पायौ कि हांजू ।। नृप कुमार दश धूप खेयकर इन्द्रहि नाम कहायौ कि हांजू ॥६॥ देव विभूति महन्ती पाई सब विधि सुख उपजायौ कि हांजू ॥ जिनमति नारी कपि शुक शुध फल लेय जजौ हरषायौ कि हांजू ॥७॥ अन्तराय क्षयकार पंच विधि मोक्ष परमपद पायौ कि हांजू ॥ इक २ विधिसे जिन पद पूजे तिनने यह फल पायौ कि हांजू॥८॥ प्रष्ट दरब ले धन्यभाग लखि पूजत पाप नशायौ कि हांजू ॥ तातें गिरवर मन वच तन करि जिन पूजन मन लायौ कि हांजू ॥९॥ (चाल "हांजू" भोजनके समय) । श्रादिनाथ जिन भोजन कारण नगर अयोध्या आये कि हांजू ॥ टेक ॥ षटू महिना बीते प्रभुजीको जोग अहार न पाये कि हांजू ॥ कोउ प्रहार विधी नहिं जाने श्रादर बहुविधि ठाने कि हांजू ॥१॥ कोउ इक थार

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