Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 03
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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प्रतिपादन तो जैनाचारशास्त्र से लगभग पूरा का पूरा ही मिलता-जुलता प्रतीत होता है। इससे सभी के मूल स्रोत का एकत्व सिद्ध होता है।
'जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त' के इस तृतीय खण्ड में जैनाचार को वर्तमान समस्याओं के सन्दर्भ में भी देखने की रोचक एवं प्रासंगिक चेष्टा की गई है। वास्तव में ही जैनाचार के अन्तर्गत राष्ट्र की ही नहीं, अपितु समूचे विश्व की सर्व समस्याओं के सशक्त समाधान छुपे हुये हैं। भारत के पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह तो यहाँ तक कहते थे कि यदि सभी लोग जैनाचार का पालन करें तो एक भी पुलिस-चौकी की आवश्यकता न पड़े।
इस प्रकार इस कृति का यह तीसरा खण्ड भी पूर्ववर्ती दो खण्डों की भाँति बड़ा ही उपयोगी बन गया है। प्रतिपादन-शैली इसकी भी ऐसी ही है कि पाठक अन्त तक इससे बँधा रहता है।
इस प्रकार अब इस कृति का प्रकाशन-कार्य पूर्णता को प्राप्त होता है। कृति की अनुवादिका श्रीमती शकुन्तला जैन तथा प्रकाशक, जैनविद्या संस्थान, दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी कोटिशः धन्यवादाह हैं कि उन्होंने जैन आचारशास्त्र को समझने के लिए अत्यन्त उपयोगी इस कृति को हिन्दी पाठकों को उपलब्ध कराया, अन्यथा यह महान कार्य शायद ही कभी हो पाता।
- वीरसागर जैन
(XIII)
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