Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 03
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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बुद्धि के होते हुए भी आत्मा को प्राप्त नहीं कर सकता है।'' मुण्डकोपनिषद् का कथन है कि आत्मा का अनुभव उस व्यक्ति को प्राप्त नहीं हो सकता जो शक्तिहीन या अकर्मण्य या अनुचित तपस्या से युक्त है।138 गीता के अनुसार जो ज्ञान चक्षुवाले हैं वे ही अन्त:स्थित आत्मा को देख सकते हैं।139 ज्ञान तीन प्रकार का माना गया है। सात्त्विक ज्ञान सारे अस्तित्व में एक अपरिवर्तनीय सत्ता को देखता है, उसका भेद राजस से किया जाना चाहिए जो अस्तित्व की विविधता को देखता है और तामस से भी किया जाना चाहिए जो एक वस्तु को ही पूर्ण मानकर देखता है।140 गीता के अनुसार सात्त्विक ज्ञान उचित ज्ञान है। अनुशासनहीन व्यक्ति के द्वारा दिव्य अवस्था प्राप्त नहीं की जा सकती है।41 और पाप कर्मों को करनेवाले जो माया से भ्रमित हैं और जो दुष्ट स्वभाववाले हैं वे उच्च अवस्था प्राप्त नहीं कर सकते जब कि शांति उनके द्वारा अनुभव की जा सकती है जिन्होंने सभी इच्छाओं को त्याग दिया है और जो आसक्ति, अभिमान और स्वार्थ से रहित है।142 इच्छा क्रोध को उत्पन्न करती है
और ज्ञान को ढंक देती है, परिणामस्वरूप वह आत्मा की नित्य शत्रु है।143
137. कठोपनिषद्, 1/2/24 138.. . मुण्डकोपनिषद्, 3/2/4 139. भगवद्गीता, 15/10 140. भगवद्गीता, 18/20, 21, 22 141. भगवद्गीता, 15/11 142. भगवद्गीता, 7/15, 2/71 143. भगवद्गीता, 3/37, 38, 39
Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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