Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 03
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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पालन करने के लिए उन दुःखों के बारे में सोचा जाना चाहिये जो उन व्रतों का पालन न करने से उत्पन्न हो सकते हैं।
( 3 - 4 ) आसन और प्राणायाम - स्थिर और आरामदायक स्थिति आसन है। 13 लयात्मकता और नियम से श्वास लेना प्राणायाम है । 3 14 जैनदर्शन में भी आसन का महत्त्व समझा गया है। मूलाचार का कथन है कि मुनि जो स्वाध्याय और ध्यान में लगा हुआ है निद्रा के अधीन नहीं होता और रात्रि गुफा में पद्मासन, वीरासन या उसी के समान स्थिति में व्यतीत करता है। 15 कार्तिकेयानुप्रेक्षा और ज्ञानार्णव ध्यान के अभ्यास के लिए कई प्रकार के आसन प्रस्तावित करते हैं । 3 16 जैनदर्शन प्राणायाम के पक्ष में नहीं है। शुभचन्द्र मानते हैं कि जो मुनि मोक्ष की अभिलाषा करता है उसके लिए प्राणायाम क्रिया अवरोध का कार्य करती है क्योंकि उससे अलौकिक शक्तियाँ प्राप्त हो जाती हैं। 317 यद्यपि वह ध्यान के लिए इसके महत्त्व को स्वीकार करते हैं । 3 18
(5) प्रत्याहार - इन्द्रियों को उनके विषयों के आकर्षण से वापस मोड़ना प्रत्याहार कहलाता है । 319 इसकी तुलना जैनधर्म में पाँच इन्द्रियों के नियंत्रण से की जा सकती है। 320 जो मुनि आध्यात्मिक मार्ग
313. योगसूत्र, 2/46
314. योगसूत्र, 2/49, 50
315. मूलाचार, 794, 795 316. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 355
ज्ञानार्णव, 28/10
317. ज्ञानार्णव, 29/6, 11
318. ज्ञानार्णव, 29/1
319. योगसूत्र, 2 / 54, 55
320. मूलाचार, 16
Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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