Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 03
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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पालन करता है। संक्षेप में, वह शुद्धीकरण के मार्ग का अनुसरण करता है जो केवल निषेधात्मक प्रक्रिया नहीं है बल्कि सकारात्मक प्राप्ति को भी समाविष्ट करती है। स्वाध्याय और भक्ति रहस्यवादी के नैतिक और आध्यात्मिक अनुशासन का अनिवार्य भाग हैं। इस तरह आत्मा अपने विकास के अनुसार पाँचवें या छठे या सातवें गुणस्थान के प्रथम भाग में पहुँच जाता है।
( 4 ) इसी समय आत्मा ने अपने में अपने को निमज्जन करने की शक्ति प्राप्त कर ली है, वह गहन रूप से अन्तर्मुखी हो जाता है। सातवें गुणस्थान का दूसरा भाग और शेष बारहवें गुणस्थान तक ध्यान की या ज्योतिपूर्ण और हर्षोल्लास पूर्ण अवस्थाएँ हैं। श्रेणियाँ गहरे ध्यान के माध्यम से चढ़ी जाती हैं।
(5) जब आत्मा ग्यारहवें गुणस्थान में पहुँचता है तो वह प्रथम या चतुर्थ गुणस्थान में गिरता है। इसका कारण है- कषायों के दमन का उभरना और इस प्रकार आत्मा अंधकार काल का अनुभव करता है । सभी रहस्यवादी इस अंधकार काल का अनुभव नहीं करते हैं। जो रहस्यवादी क्षपक श्रेणी चढ़ते हैं वे अंधकार काल से बच जाते हैं और तुरन्त लोकातीत जीवन का अनुभव करने में समर्थ हो जाते हैं किन्तु जो उपशम श्रेणी चढ़ते हैं वे इस जीवन से वंचित हो जाते हैं। निःसन्देह परवर्ती रहस्यवादी भी उतनी ही ऊँचाई पर पहुँच जायेंगे किन्तु केवल तब जब वे क्षपक श्रेणी चढ़ेंगे। आत्माएँ, यद्यपि प्रत्येक नहीं, अपने जीवन में तीन प्रकार के अंधकार का सामना करती है। प्रथम- जाग्रति से पूर्व, द्वितीय - जाग्रति के पश्चात्, तृतीय- उपशम श्रेणी चढ़ने के
कारण।
(6) सुप्त आत्मा जाग्रत होने के पश्चात् अब आध्यात्मिक रूपान्तरण, नैतिक और बौद्धिक तैयारी के माध्यम से ध्यान की सीढ़ियों
Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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