Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 03
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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— राज्य के सद्गुण
___ सम्यग्दर्शन से राज्य के लिए जो सद्गुण उत्पन्न होते हैं वे इस प्रकार हैं- प्रथम, अहिंसा की प्रभावोत्पादकता में राष्ट्रिय और अन्तर्राष्ट्रिय समस्याओं को हल करने के लिए राज्य को जरा सा भी संदेह नहीं करना चाहिए। भय जो अहिंसा के विश्वास में बाधा उत्पन्न करता है उसे हटा देना चाहिए। अहिंसा को कायरता और मजबूरी का गुण नहीं समझना चाहिए। इसको उपयोगिता का हथियार मानना राज्य के नि:शंकित सद्गुण को विकृत करनेवाला माना जाना चाहिए। परिणामस्वरूप इसमें दृढ़ श्रद्धा राज्य की कठिन परिस्थितियों में भी अपरिवर्तनीय रहेगी। दूसरा, राज्य को किसी भी परिस्थिति में दूसरे देशों की उपलब्धियों को देखकर उन पर शासन करने की प्रवृत्ति नहीं दिखानी चाहिए। किसी राज्य की मदद करने में उस पर शासन करने की भावना नहीं होनी चाहिए। यह राज्य का नि:कांक्षित सद्गुण है। तीसरा, निर्विचिकित्सा सद्गुण के अनुसार राज्य को गरीबों की अवहेलना नहीं करनी चाहिए। चौथा, अमूढदृष्टि सद्गुण यह बताता है कि राज्य को भय, हीनता और लालच के वशीभूत होकर सैनिक अनुबंध में सम्मिलित नहीं होना चाहिए । पाँचवाँ, जब राज्य अपनी उत्पादन शक्ति को बढ़ाता है तो उसके साथ उचित विभाजन की भी व्यवस्था करनी चाहिए। यह उसका उपबृंहण सद्गुण है। छठा, जब दूसरे राज्य भय, लालच आदि कषायों से उचित और शांति के मार्ग से भ्रमित हो जाये तो उसको मानवीय उद्देश्यों की याद दिलाकर पुनःस्थापित करना स्थितीकरण सद्गुण कहलाता है। सातवाँ, राज्य के सभी सदस्यों के प्रति बिना किसी जाति, रंग, मत और लिंग के पक्षपात के प्रेम रखना वात्सल्य सद्गुण कहलाता है। आठवाँ, यह राज्य के लिए आवश्यक है कि वह अपने सदस्यों को शिक्षित करे जिससे राज्य का विकास हो और अहिंसा के साधनों का
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Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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