Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 03
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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इस प्रकार उपयोग करे कि दूसरे राज्य भी इसकी नीति से प्रभावित हों। इससे सिद्धान्त और नीतियों का प्रचार दूसरे राज्यों में भी होगा। यह राज्य का प्रभावना सद्गुण है।
जो सद्गुण सम्यग्ज्ञान से उत्पन्न होता है वह है- अनेकान्त। जिसका उद्देश्य विभिन्न दृष्टिकोणों को सम्मिलित करना है जिससे उनमें सामंजस्य स्थापित किया जा सके। जब राज्य अनेकान्त की भावना को ग्रहण कर लेता है तो यह सहनशील हो जाता है और उसके विभिन्न पक्षों पर ध्यान देता है। अनेकान्त का सिद्धान्त एकान्तवाद को व्यवहार में से ही हटा देता है। निरपेक्ष दृष्टि के कारण राज्य दूसरे राज्यों के प्रति जिनका जीवन भिन्न प्रकार का होता है उनके प्रति निषेधात्मक दृष्टिकोण अपना लेता है किन्तु अनेकान्त हमारी दृष्टि को व्यापक करता है और एक दृष्टि की निरपेक्षता को समाप्त कर देता है। परिणामस्वरूप यह अन्तर्राष्ट्रिय भावनाओं का पोषण करता है और अनेकान्तवादी दृष्टिकोण समस्या के समाधान हेतु अपनाता है। यह दूसरे राज्यों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण अपनाता है। यहाँ कहना अनुचित न होगा कि युद्ध एकान्तवाद का परिणाम होता है जब कि शान्ति बहुमुखी दृष्टिकोण से उत्पन्न होती है। परवर्ती दृष्टिकोण राज्य को अनिश्चयी नहीं बनाता है किन्तु यह संश्लेषात्मक दृष्टिकोण को अपनाता है और विभिन्न दृष्टिकोणों में सामंजस्य स्थापित करता है।
. सम्यक्चारित्र राज्य को पाँच सद्गुणों का गौरव प्रदान करता है अर्थात् अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह। प्रथम, अहिंसा की परिपूर्णता राज्य में गृहस्थ के समान आत्म-विरोधी होगी। जब तक राज्य है तब तक किसी-न-किसी रूप में हिंसा अनिवार्य रहेगी। जिस प्रकार गृहस्थ मुनि के समान हिंसा नहीं टाल सकता उसी प्रकार राज्य
Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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