Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 03
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 88
________________ सीमा पार कर ली जाय। इसके अतिरिक्त पतंजलि संन्यास जीवन के पक्ष में है क्योंकि गृहस्थ जीवन महाव्रतों के पालन में कई बाधाएँ उत्पन्न करता है। संन्यासी जीवन यौगिक प्रक्रिया का आवश्यक पक्ष हैं। व्यास भाष्य का कथन है कि अहिंसा यम व नियम का आधार है और अहिंसा को शुद्ध रूप में पालने के लिए यम व नियम सांधे जाने चाहिए | 306 ये महाव्रत जैनदर्शन के महाव्रत 307 से मेल रखते हैं जिसमें अहिंसा आधारभूत होती है । 308 अणुव्रत गृहस्थ के लिए होते हैं इस संबंध में पतंजलि के विचारों को समझना संभव नहीं है। (2) नियम- नियम 309 पाँच प्रकार का है- ( 1 ) शौच, (2) संतोष, ( 3 ) तप, (4) स्वाध्याय और (5) ईश्वरप्रणिधान । साधक जिसने मन को शुद्ध कर लिया है वह सकारात्मक गुणों को विकसित करता है। जैनाचार्य कई गुण प्रस्तावित करते हैं जिनको साधक द्वारा अपनाया जाता है अर्थात् क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य | 310 स्वाध्याय आन्तरिक तपों में सम्मिलित किया गया है जब कि स्तुति और वंदना भक्ति में। पतंजलि''' का यह कथन कि जब साधक पापपूर्ण विचारों के प्रभाव में रहता है तो उसे उनके बुरे परिणामों को सोचकर दूर कर देना चाहिए, इसकी तुलना तत्त्वार्थ सूत्र 12 में उल्लिखित इस बात से की जा सकती है कि व्रतों का 11 306. योगसूत्र और भाष्य, 2/30 307. चारित्रपाहुड, 30, 31 ācārānga-Sūtra, 2/15 308. सर्वार्थसिद्धि, 7/1 309. योगसूत्र, 2/32 310 . तत्त्वार्थसूत्र, 9/6 311. योगसूत्र, 2 / 33, 34 312. तत्त्वार्थसूत्र, 7/9 (54) Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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