Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 03
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 63
________________ अशुभ लेश्याओं का वर्णन करेंगे क्योंकि वे आसुरी संपदा से मेल रखती हैं। कृष्ण लेश्या - तीव्र क्रोधी, वैर रखनेवाला, झगड़ालु, दुष्ट, दया व करुणा से रहित व्यक्ति कृष्ण लेश्यावाला होता है। 167 नील लेश्या - जो आलसी हो, अभिमानी हो, मायाचारी हो, लालची हो, धोखेबाज हो, निद्रालु हो, इन्द्रिय-विषयों के लिए इच्छुक हो- वह नील लेश्यावाला होता है। 168 कापोत लेश्या - जो दूसरों पर क्रोध करता हो, शोक करता हो, डरता हो, दूसरों की निन्दा करता हो, ईर्ष्यालु हो, दूसरों को सताता हो, चापलूसों से प्रसन्न होता हो, अपने लाभ-हानि को न समझता हो, अपना प्रशंसक हो, चापलूसों को धन देता हो, दूसरों का विश्वास न करता हो- ये सभी कापोत लेश्या के लक्षण हैं। 169 आठ प्रकार के मद हैं जो आसुरी संपदा में सम्मिलित किये जा सकते हैं- ज्ञान मद, प्रतिष्ठा मद, कुल मद, जाति मद, बल मद, ऋद्धि मद या विद्या मद, तप मद और शरीर मद- 170 इन सबको त्यागना चाहिए। गीता से इतनी समानता होते हुए भी जैनधर्म परमात्मा को जगत में स्वीकार नहीं करता है। जैनधर्म के अनुसार प्रत्येक आत्मा परमात्मा है। चारित्र का निषेधात्मक पक्ष- इन्द्रिय और मन का संयम कठोपनिषद् का कथन है कि जो बुद्धि रूपी सारथि अविवेकी एवं असंयत चित्त से युक्त होता है उसके अधीन इन्द्रियाँ उसी प्रकार नहीं रहती जैसे सारथि के अधीन दुष्ट घोड़े । " आत्मा को शरीररूपी रथ का 171 167. गोम्मटसार जीवकाण्ड, 509 168. गोम्मटसार जीवकाण्ड, 510, 511 169. 170. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 25 171. कठोपनिषद्, 1/3/5 Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त गोम्मटसार जीवकाण्ड, 512, 513, 514 Jain Education International For Personal & Private Use Only (29) www.jainelibrary.org

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