Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 03
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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के कार्य में वह जागता है।259 आचारांग का कथन है कि अज्ञानी सोते हैं, किन्तु मुनि सदैव जागते हैं।260 समन्तभद्र का कथन है कि जीवेषणा से प्रेरित होकर साधारण मनुष्य दिन भर परिश्रम करते हैं और थकने के पश्चात् रात्रि में सो जाते हैं किन्तु रहस्यवादी आत्मशुद्धि और आत्मानुभव की प्रक्रिया में प्रमाद, अकर्मण्यता और शिथिलता के वशीभूत हुए बिना रात और दिन जागता है।261 इतना होते हुए भी गीता, उपनिषद् और जैनधर्म में मौलिक भेद यह है कि जैनधर्म में वर्णित रहस्यवादी आत्मा का अनुभव करने के पश्चात् भी आत्मा को सब जगह नहीं देखता है। .
आठवाँ, मुनि जिसने उच्च अवस्था को प्राप्त कर लिया है वह चट्टान की तरह दृढ़ होता है। कोई भी वस्तु जो उससे टकराती है नष्ट हो जाती है। छान्दोग्योपनिषद् के अनुसार वह व्यक्ति जो पवित्र आत्माओं की निन्दा करता है वह अपने आपको नष्ट कर देता है।262 इसी प्रकार समन्तभद्र का कथन है कि वह व्यक्ति जो उच्च आत्माओं पर झूठा आरोप लगाता है, बर्बादी की ओर जाता है।263
नवाँ, मुण्डकोपनिषद् कहता है कि जो मनुष्य समृद्धि चाहता है उसे उस रहस्यवादी की जिसने आत्मानुभव प्राप्त कर लिया है, पूजा करनी चाहिये।264 जैनधर्म के अनुसार रहस्यवादी का पवित्र नाम ही शुभ और इच्छित उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक होता है।265
259. मोक्षपाहुड, 31 260. Acāranga-Sutra, 1.3,1, P.28 261. स्वयंभूस्तोत्र 48 262. छान्दोग्योपनिषद्, 1/2/8 263. स्वयंभूस्तोत्र, 69 264. मुण्डकोपनिषद्, 3/1/10 265. स्वयंभूस्तोत्र, 7
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